Non Veg Prasad In Hindu Temple: आपको यह बात जानकर हैरानी होगी कि भारत में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जहां भगवान को प्रसाद के रूप में मांस और शराब चढ़ाया जाता है। जी हां यहां पर भगवान को चिकन, मटन और मछली दी जाती है। साथ ही भक्त प्रसाद को श्रद्धा के रूप में स्वीकार करते हैं।

Non Veg Prasad In Hindu Temple: सावन का पावन महीना शुरू हो चुका है। इस महीने में अधिकतर हिंदू मांस- मदिरा से परहेज करते हैं। कहा जाता है कि इस पवित्र महीने में मांस का सेवन करना गलत और धर्म विरुद्ध आचरण है। वहीं पुरानी मान्यताओं के अनुसार भारतीय धर्म शास्त्रों में मांसाहार को वर्जित किया गया है। यही बड़ी वजह है कि जब भी किसी मंदिर में प्रसाद चढ़ाने की बात की जाती है तो सामग्री के पवित्रता की सबसे पहले परख की जाती है। साथ ही यह देखा जाता है कि भगवान को चढ़ाने वाला प्रसाद शुद्ध शाकाहार और सात्विक है या नहीं।
ऐसे मंदिर जहां पर भगवान को नॉनवेज चढ़ाया जाता…
हालांकि, भारत एक विविधता वाला देश है जहां पर हर 100 किलोमीटर पर एक अलग भाषा, बोली, पहनावा और खानपान बदलता रहता है। वैसे ही वहां के लोगों के आस्था, पूजा पद्धतियां और मान्यताएं भी बदलने लगती हैं। लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में कुछ ऐसे मंदिर भी हैं जहां पर भगवान को जानवरों का मांस प्रसाद के रूप में अर्पण किया जाता है। जी हां यह जानकर आपको हैरानी होगी लेकिन वहां पर चिकन- मटन और मछली प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। इतना ही नहीं वहां पर जाने वाले भक्त उस प्रसाद को श्रद्धापूर्वक स्वीकार करते हैं। तो चलिए अपने इस लेख में हम आपको बताते हैं, भारत के ऐसे मंदिर जहां पर भगवान को नॉनवेज चढ़ाया जाता है।
1. कामाख्या(Kamakhya) मंदिर, असम

असम के गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर सबसे शक्तिशाली 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह “पवित्रता” से जुड़े लगभग हर ब्राह्मणवादी मानदंड को तोड़ता है। साथ ही ये मंदिर दुनियाभर में तंत्र विद्या के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन कामाख्या उन गिने-चुने मंदिरों में से एक है जहाँ खुलेआम पशु बलि दी जाती है। विशिष्ट अनुष्ठानों के दौरान बकरों की बलि दी जाती है। मांस, जो हमेशा बिना लहसुन या प्याज के पकाया जाता है, देवी को चढ़ाया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
2. काल भैरव(Kal Bhairav) मंदिर, उज्जैन

शिव के उग्र रूप, काल भैरव की पूजा पूरे भारत में की जाती है, लेकिन उन्हें समर्पित उज्जैन मंदिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है। यहाँ, भक्त फूल या लड्डू नहीं चढ़ाते। वे देशी शराब की बोतलें लाते हैं। यहां पर ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां तक की लोग अपने स्टॉल पर शराब भी बेचते हैं। जो इस धार्मिक उपयोग के लिए कानूनी रूप से स्वीकृत है। काल भैरव को तामसिक का देवता भी माना जाता है।
3. कालीघाट(Kalighat) मंदिर, बंगाल

बंगाल की राजधानी कोलकाता में स्थित कालीघाट मंदिर भी ऐसे ही मंदिरों में से एक है। माता का यह स्वरुप उग्र, बिखरे बालों वाला हैं और अक्सर उन्हें खोपड़ियों के हार और मानव भुजाओं से सजे वस्त्र के साथ चित्रित किया जाता है। अगर माता के भोग की बात की जाए तो पूजा में रक्त, मांस और मदिरा शामिल हैं। यहां पर आनें वाले सभी भक्त देवी को बकरे की बलि देते हैं। जिसके बाद मांस को प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटा जाता है।
4. कमलेश्वर महादेव(Kamaleshwar Mahadev) मंदिर, गोवा

गोवा के मंदिरों के शहर, कमलेश्वर महादेव में, भगवान शिव को ताज़ी पकड़ी गई मछली का भोग लगाया जाता है। यह बात उन लोगों को चौंकाने वाली लग सकती है जो हिमालय में ध्यान करते शिव की सात्विक छवि के आदी हैं। लेकिन गोवा में, स्थानीय मछली पकड़ने की संस्कृति के साथ सहज रूप से घुल-मिल जाती है। इस अनुष्ठान में कड़े दिशानिर्देशों का पालन किया जाता है: मछली को धोया जाता है, साफ़ किया जाता है और श्रद्धापूर्वक अर्पित किया जाता है। बाद में पुजारी और भक्त पवित्र अनुष्ठानों का पालन करते हुए इसका सेवन करते हैं।
5. हिमाचल के कामाख्या(Kamakhya) और कुल्लू(Kullu) मंदिर

हिमाचल प्रदेश अपने शांत मंदिरों और देवी पूजा के लिए जाना जाता है। लेकिन इस शांति के नीचे ऐसे मंदिर हैं जो पशु बलि की प्राचीन प्रथाओं को संजों कर रखते हैं। हिमाचल के कामाख्या मंदिर में, विशिष्ट त्योहारों के दौरान बकरे की बलि दी जाती है। कुल्लू और आसपास के क्षेत्रों में, दशहरा रामलीला के साथ नहीं, बल्कि स्थानीय देवताओं को रक्त चढ़ाने के अनुष्ठान के साथ मनाया जाता है।
6. केरल(Kerala) के मंदिर
केरल के मंदिरों को अक्सर शास्त्रीय नृत्य, कठोर अनुष्ठानों और मंदिर कलाओं के नज़रिए से देखा जाता है। लेकिन कई मंदिर, खासकर मालाबार क्षेत्र की बात करें तो वहां के लोग अपने देवताओं को ताड़ी (ताड़ की शराब), तली हुई मछली और मांस चढ़ाते हैं। ये प्रसाद प्राचीन रीति-रिवाजों का पालन करते हैं, जो कभी-कभी थेयम परंपराओं से जुड़े होते हैं।

अनुष्ठानों से पहले, पुजारी स्नान करते हैं, कुछ खाद्य पदार्थों से परहेज करते हैं, और प्रसाद को विशिष्ट तरीकों से पकाते हैं, जैसे बिना प्याज या लहसुन के। भक्तों का मानना है कि ऐसा प्रसाद न केवल शरीर को बल्कि पूर्वजों और आध्यात्मिक शक्तियों को भी पोषण देता है जो बदले में उन्हें आशीर्वाद देती हैं।
(Disclaimer: यहां पर दी गई सभी जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। देवभूमी गंगा इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इस लेख के सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)
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